Tuesday, 31 May 2016

A Poem About Our Dream Town



पता नहीं लोग हमारे शहर को छोटा क्यों कहते थे,
हमारे तो सभी बडे बूढ़े वहीं रहते थे।
चिड़ियों का शोर सुबह उठाता था,
हर छत से कोई दोस्त आवाज लगाता था।
बचपन को घेरे न गाड़ियों के हुजूम थे,
निकलते थे जल्दी दोस्तों से मिलने वर्ना स्कूल नही दूर था।
होली हो या ईद सब गले मिलते थे,
हर त्योहार पर बड़े मेले लगते थे।
वो हर घर एक हवेली लगता था,
जहाँ पीढ़ियों का कुनबा साथ बसता था।
हर चौराहे पे चाचा का घर होता था।
मेरे शहर के लोगों के घर नही दिल बड़े होते थे,
इतनी जगह थी दिलों में कि छोटे होके भी वो शहर बड़े होते थे।


Courtesy: Unknown Source.

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